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सफर - मौत से मौत तक….(ep-20)

यमराज और नंदू अंकल दोनो आ पहुंचे नंदू के घर पर…. हां उसी घर पर जहां से तुलसी और सरला की डोली उठी थी, उसी घर मे जहाँ से चिंतामणि ने अपनी सारी चिन्ताओ का ठेकेदार नंदू को बनाकर अपनी चिन्ताओ से मुक्ति ले ली थी,  उसी घर मे जहां कौशल्या ने बुढ़ापे में छत से गिरकर एक दर्दनाक मौत को अपने आगोश में समेटा था। हाँ वही घर जिसमे पाय पाय जोड़कर रिक्शे वाले नंदू ने पैसा कमाया और समीर को पढ़ाते पढ़ाते कुछ पैसे जोड़े, इसी घर पर अपने घुटनों को तकिया बनाकर ऑटो लेने के सपने देखे थे, और इसी घर उससे भी बड़े सपने को पूरा करने के लिए उस सपने को छोड़ दिया….हाँ ये वही घर है जिसपर सिर्फ एक वक्त की रोटियां नंदू पकाता है क्योकि अभी तक बैंक का लॉन खत्म नही हुआ है, अब भी किश्तें चालू थी। अभी भी महीने में कमाई का थोड़ा हिस्सा बैंक में देने जाया करता था। इसी घर मे उसे यह खबर मिली थी कि अब समीर कमाने लगा है, लेकिन नंदू ने कभी एक पैसा खुद नही मांगा, ना समीर ने पूछा। समीर दूर था उसे यही लगा था कि पापा के फोन पर रोज कुशलता मिल ही जाती है, और वैसे भी उन्हें पैसो की क्या जरूरत पड़ेगी, वो कल तक अपने साथ साथ मेरी जरूरत पूरी कर रहे थे, अब वो पैसे तो बच ही रहे होंगे मेरे हिस्से की थी।

उस दिन समीर अपने घर आया….और अकेले आया था, मैं बहुत खुश था, शाम को उसके पसन्द का खाना बनाने में दिन से ही जुट गया। और शाम को कोशिशों में खरा उतरते हुए लाजवाब भोजन बना लिया था। दोनो एक अरसे बाद एक साथ बैठकर खाना खाएंगे यही सोचकर मैं उसका इन्तजार रहा था, वो शाम के समय अपने पुराने करीबी दोस्त नवीन से मिलने चले गया था जिस वजह से आने में देर हो गयी, मैं रोज आठ बजे के बाद अपना खाना खा लेता था, लेकिन आज अकेले था तो मैंने अपने हिस्से की चार रोटी बनाकर नंदू के लिए भी छह रोटी पका दी,और उसके आने का इंतजार करने लगा। एक अजीब तरह का शुकुन था। जब वो खाना खाने बैठा तो मैं उसे बार बार देख रहा था,
  आज कोई नई बात नही थी, बचपन मे भी मैं उसे बार बार देखता था, उसकी चेहरे की हंसी, उसके गालों के डिंपल और उसका भौहों को उठाकर इशारे में सवाल पूछना- "ऐसे क्यो देख रहे हो" , सब कुछ मुझे गौरी की याद दिलाता था, ये सवाल वो बहुत ही मुस्कराकर पूछता था। जैसे गौरी पूछा करती थी। जब गौरी रोटियां सेखती थी और माँ मुझे रोटी लेने बुलाती थी तो गौरी अपने भौहों को उठाकर सवाल करती- "कितनी चाहिए?"  मैं माँ के सामने बहुत ही बेशर्मी से बोलता था- "जितने भी प्यार से खिला दोगे, मुझे सब पच जाएगा"  और हंस पड़ता, लेकिन कभी कभी आटे की तरफ नजर घूमती तो मुझे ऐसा लगता कहीं गौरी और मां के लिए कम ना हो जाये, दो सोचकर आता और आधी तोड़ ले जाता….अगर नही लिया तो भी उन्हें बुरा लगेगा इसलिये आधा लेना मजबूरी थी। भले बाद में बिस्तर पर गौरी से शिकायत करता था कि आज आटा कम क्यों गुथा….थोड़ा बच भी जाये कोई बात नही, कम होता अच्छा नही लगता।
आज खुद ही पकाकर रोटियां ले आया था, और समीर को खाते हुए उसे देख रहा था..तो एक फ़रक तो मालूम हुआ कि जमाना बदल रहा है, मेरा टाइम था कि मैं अपने बाबूजी से पहले कभी नही खाता था, हमेशा उनके साथ या उनसे बाद खाता था। सोचा था आज समीर बोलेगा की हम दोनों एक साथ खाते है, अपने लिए भी लगा लो खाना…." नंदू अंकल की आंखे डबडबा गयी और वो चुप हो गए।

यमराज कोई सवाल करता कि नंदू और उसके बेटे के बीच बातचीत शुरू होने लगी , शायद आगे की बाते उनसे पता लगेंगी।

नंदू अपने बेटे को प्यार से निहार रहा था। समीर दो रोटी खा चुका था, पापा को लगातार उसकी तरफ देखते हुए देखा तो अपनी भौहें उठाकर पूछ बैठा- "ऐसे क्यो घूर रहे हो….मेरी डाइट पर नजर मत लगाना, जिम जा जाकर बनाई है अच्छी डाइट"  कहकर समीर हँस पड़ा।

नंदू भी हंसते हुए बोला- "मां बापू की भी कभी नजर लगती है क्या…."

"फिर भी रिस्क क्यो लेना" समीर बोला।

समीर मजाक में बोल रहा था, पापा उसे देखकर उदासी से उसे निहार रहे थे, जिस वजह से उनका ध्यान भटकाने के लिए समीर ये सब बोला।

नंदू उसकी बदली हरकतों के साथ बदले लफ्ज़ो से भी दुखी था….
"पहले वो बोला करता था- "ऐसे क्या देख रहे हो….और आज देखने और घूरने में भी फ़रक नही रह गया था" नंदू अंकल ने यमराज से कहा

"अब कॉलेज जाकर आया लड़का है, लड़कियों को देखता होगा तो वो कहती होंगी - "ऐसे क्या घूर रहा है" इसमे कौन सी बड़ी बात है, भाषा बदल जाती है"""" यमराज ने कहा।

अब दोनो मौन थे, और नजारा देख रहे थे। समीर एक के बाद एक करके आठ रोटी खा चुका था, और एक रोटी और निकालते हुए बोला….-  "हिसाब के बहुत पक्के हो पापा आप.. बस एक रोटी बच जाएगी, वरना बनाया करेक्ट था आपने"

नंदू क्या बोलता, उसने तो छह ही बनाई थी उसके लिए, पिछली बार जब आया था तब समीर चार रोटी खाता था, इसलिए नन्दू ने छह बनाई थी,
नंदू सोचने लगा- "अच्छा हुआ हम दोनों एक साथ नही बैठे खाने के लिए, वरना आज इसके लिए कम पढ़ जाती"

यमराज की भी आंखे भर आयी और वो अपने बगल में खड़े नंदू के सीने पर हाथ रखते हुए बोला….- "आपके सीने में तो एक माँ की दिल भी बसता है"

नंदू हंसते हुए बोला- "माँ का दिल ही नही खुद एक माँ भी बसती है,"

"लेकिन एक बात समझ नही आई, उसने एक बार पूछा क्यो नही की आपने  खाया या नही" यमराज ने सवाल किया।

"उसे आदत हो चुकी होगी अकेले खाने की, वैसे भी उसे पता था कि मुझे आठ बजे भूख लग जाती है, इसलिए भी शायद इसे लगा आज भी खा लिया होगा" नंदू बोला।

"फिर आपने जरूर किचन में छिपकर वो एक रोटी से काम चला लिया होगा ना" यमराज ने पूछा।

"नही…. मेरे पेट को भरने के लिए उस रोटी की भी जरूरत नही थी, मैं प्यार का भूखा हूँ, मुझे बस थोड़ा प्यार मिल जाये उतना काफी है, और वैसे भी समीर को कहते देख रहा था तो ऐसा लग रहा था मेरे गले से निवाला उतर रहा है, जितना प्यार मैंने समीर से किया था शायद ही मेरे बाबूजी मुझसे करते होंगे, मेरे क्या दुनिया मे किसी के बाबूजी नही करते होंगे" नंदू कुछ ज्यादा ही इमोशनल होने लगा था।

यमराज ने नंदू अंकल का हाथ पकड़ा और उसे कमरे से बाहर ले आया।

"मुझे यहाँ क्यो खींच लाये??" नंदू अंकल ने यमराज से पूछा।

"बैठो पहले" यमराज ने नंदू के कंधे को दबाते हुए उन्हें सोफे में बिठाया ।

"हाँ अब बोलो….मुझे इधर क्यो ले आये" नंदू अंकल ने कहा।

"मेरी बात ध्यान से सुनो……मुझे थोड़ी देर के लिए कही जाना पड़ रहा है….मैं जाकर आता हूँ, तब तक आप जहां समीर जाएगा उसके साथ चले जाना….वरना अगर पीछे छूट गए तो कहानी अधूरी रह जायेगी….और आपमे इतनी पर्याप्त शक्ति नही है कि आप कभी भी कही भी चले जाओ……" कहकर यमराज जाने लगा।

"सुनो….." नंदू ने आवाज दी।

यमराज को देर हो रही थी फिर भी वो पीछे मुड़ा……और भौंहों को उठाते हुए बोला- "हम्म बोलो"

नंदू एक उदासी के साथ आगे आया और यमराज के सामने खड़े होकर बोला- "ऐसे मुझे अकेले छोड़कर कहाँ जा रहे हो, इतने दिन साथ रहकर तो आदत सी हो गयी है, मुझे याद आयेगी तो कहाँ ढूंढूंगा आपको"

"आप भी ना अंकल जी….अब भला मुझे कौन याद करता है, मुझसे तो सब डरते है…"  यमराज ने कहा।

"तुम चले गए तो अंत कैसे देखोगे कि मैंने फांसी क्यो लगाई" नंदू ने कहा।

"क्या पता तब तक लौट आऊँ,अगर ना आ सका तो आप ही ना….बाद में तो बता ही दोगे" यमराज बोला।

ये बात सुनकर नंदू अंकल का एक मन तो किया अभी बता दूँ इनको….लेकिन फिर उसने सोचा अभी बता दिया तो इतने सालों की मेहनत बेकार चली जायेगी, इतना सफर तय कर लिया है तो एक और सही।

"लेकिन पता नही क्यो मुझे तुम्हारा साथ अच्छा लगने लगा था…और अब तो……….नंदू कुछ कहता कि यमराज गायब हो गया, शायद यमराज को बहुत ज्यादा एमरजेंसी थी,  नंदू के हाथ हवा में झूल रहे थे, क्योकि कंधा गायब हो चुका था।

नंदू उदास होकर बैठ गया….क्योकि अब किससे बात करेगा….सिर्फ यमराज ही था जो इसकी आवाज सुन सकता था, उससे बात कर सकता था……सिर्फ यमराज था जिसे वो डाँट सकता था,  यमराज से दोस्ती सी हो गयी, और आज अचनाक वो चला गया। जिसने नंदू की आत्मा को भी किसी के बिछड़ने का एहसास करवा दिया।

                         *****

समीर अब केस के सिलसिले में घूमता रहता था, लेकिन शायद इशानी के बिना उसका मन नही लगता था, हर समय, हर वक्त इशानी को याद करता था। फोन पर बहुत बाते किया करते थे समीर और इशानी।

"हाँ, यार! याद तो मुझे भी बहुत आती है आपकी, लेकिन क्या करूँ मजबूरी है….आपसे दूर रहना एक सजा है मेरे लिए" समीर ने फोन पर बात करते हुए कहा।

"आप कोशिश ही कहाँ करते हो कुछ करने की, बस मजबूरी पर बात टाल देते हो…. आपको क्या लगता है मुझे आपकी याद नही आती….मुझे पल पल याद आते हो आप, और होस्टल के दिन हम कैसे भूल सकते है" इशानी ने कहा।

"हाँ यार! तब एक दिन भी नही मिलते थे तो ऐसा लगता था साल ही हो गया।" समीर ने कहा।

दोनो बात कर रहे थे बीच में नंदू का फोन आने लगा ।

"इशानी एक मिनट होल्ड पर रहना, पापा का फोन आ रहा है।" समीर बोला।

"ओक्के…." इशानी ने कहा।

समीर ने इशानी को होल्ड करके नंदू का फोन उठाया।

"हां पापा बोलिये" समीर बोला।

"कुछ काम कर रहा था क्या….बिजी तो नही था?" नंदु ने सवाल किया।

"बिजी तो था….वो सब छोड़िए कुछ काम है तो बताईये।" समीर ने कहा।

"नही! काम तो कुछ नही था, बस ऐसे ही……" नंदू थोड़ा झिझकते हुए बोला।

"अरे यार! आपको कितनी बार कहा है जरूरी काम हो तब फोन करना, काम मे डिस्टर्ब होता है" समीर बोला

"वो हालचाल पूछने के लिए कर दिया था बेटा"  नंदू ने कहा।

"तो हालचाल मैं बता दिया करूँगा ना,मैं खुद कर लूंगा फोन" समीर ने कहा।

"दो दिन पहले किया था खुद, खुद करता है तो तीन चार दिन में एक बार….ऐसे में चिंता तो होती है ना"  नंदू बोला।

"चलो ठीक है, मैं बाद में बात करता हूँ । अभी जरूरी काम है कुछ" समीर ने कहा।

नंदू ने फोन काट दिया। शायद इशानी ने भी गुस्से में आकर फोन काट दिया….इतनी देर होल्ड पर क्यो रहती वो।

समीर ने दोबारा इशानी को फोन किया।
इशानी ने फोन उठाया और बोली- "हम्म्म्म बोलो, हो गयी बात खत्म।"

"हाँ….हो गयी यार….लेकिन अपने फोन क्यो काट दिया।" समीर ने कहा।

"तो अगर आप आधा घंटा बात करते तो आधा घंटा होल्ड पर रहती मैं" इशानी ने कहा।

समीर हंसते हुए बोल "आधा घंटा…. इतनी क्या बात करूँगा मैं….हमने तो बस हालचाल पूछना होता है….बातें तो आपसे होती है जी भरके, लेकिन जी कभी भरता नहीं" समीर बोला

"ऐसी भी क्या बात है मुझमें, जो आपका जी नही भरता" इशानी ने कहा।

"खुद की तारीफ करवाना चाहती हो?" समीर हंसते हुए बोला।

"खुद कभी करते नही, क्या करूँ" इशानी बोली।

"तो पागल वकीलों के वश की बात कहां है
तारीफ करना…. ये तो शायरों का काम है
बाकियों से बात करने में थक जाता हूँ।
आपसे बात करने पर इस थके को भी
ना जाने क्यो मिल जाता आराम है"
"समीर ने कहा।

"बस बस झुठी तारीफ मत करो" इशानी बोली।

"मैं सबूत दे सकता हूँ" समीर बोला

इशानी हंसते हुए बोली- "पागल ही हो आप"

"और दीवाना भी….मैं पागल भी और दीवाना भी, सिर्फ आपके लिए….और ये पागल दीवाना आपको बहुत याद करता है, आई रियली मिस यू इशानी"" समीर बोला

"ओव……😊 मेरा दिलीप कुमार" इशानी बड़े प्यार से पुचकारती हुई बोली।
"आई मिस यु टूऊ मच्….अब और इंतजार नही….कम बैक" इशानी ने कहा।

"ह्म्म्म….आपसे ज्यादा जल्दी है मुझे" समीर बोला।

दोनो की बात खत्म होने वाली नही है, दोनो बाय बोलकर भी आधा घंटा गुजार लेते है….इसलिए इनकी बातो को छोड़कर आगे बढ़ना चाहिए नंदू अंकल ने मन मे सोचा। जो कि आजकल समीर के साथ जा रहे थे। लेकिन समीर के साथ जाने में अजीब लग रहा था, नंदू के साथ जाने में तो कोई बात नही थी, वो उनकी खुद की जिंदगी थी, लेकिन समीर के साथ साथ घूमना उसकी प्राइवेसी के साथ थोड़ा खिलवाड़ सा लग रहा था। क्योकि समीर अपने पापा के सामने एक सीधा साधा वकील बेटा, और संस्कारी था। लेकिन अपने दोस्तों के ग्रुप में गालियों का उपयोग भी बहुत करता था, जब इशानी से मिलता तो कभी कभी मॉडर्न युग मे हर प्रेमी युगल की तरह थोड़ा रोमांस करता भी नजर आ जाता था। ऐसे में उसके साथ जाकर उसके लिए खुद के मन मे जहर घोलना और उसके प्रति प्रेम की जगह नफरत को जन्म देना था। लेकिन वो कुछ गलत थोड़ी कर रहा था। इंसान देखकर ही सीखता है, जैसा जमाना , जैसे लोग वैसे खुद को ढालने से इंसान खुश रहता है। समीर भी कलियुग के इस मॉडर्न लाइफ का एक हिस्सा था।

नंदू अंकल ने ठान लिया कि वो वापस अपने पास यानी नंदू के पास चला जायेगा….समीर आये या ना आये, भले अकेले जाना पड़े….लेकिन चले जाएगा। मगर यमराज की बात भी याद आने लगी। अब वो उसी एड्रेस पर जाएगा जो उसे पता होगा, वो भी आम इंसान की तरह, पैदल, बस में, ट्रेन में….इसलिए थोड़ा सोच समझकर फैसला लेना पड़ेगा।

कहानी जारी है


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6 Comments

Khan sss

29-Nov-2021 07:24 PM

Good

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🤫

28-Sep-2021 07:11 PM

वाकई....इमोशनल भाग रहा ये भी।कितना कुछ करते है माँ बाप अपने बच्चे के लिए,लेकिन दुनिया के झंझट में फंस कर वह उनके किये कराए को भूल ही जाते है

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Shalini Sharma

22-Sep-2021 11:53 PM

Very nice

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